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बता दें, कि श्योपुर जिले में मिट्टी से बर्तन बनाने वाले कुम्हार अभी तक परंपरागत पत्थर की चौक से कुल्हड़, दिया, मटके आदि बनाते आ रहे थे। मकड़ावदा निवासी का कहना है कि उनके घर में चार पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता चला रहा है। पत्थर का चौक भारी होने के कारण हाथ से चलाते समय कई लोगों के सीने में तेज दर्द भी उठने लगा था।

ऐसे में वह अपना काम छोड़कर दूसरे शहरों में नौकरी करने चले गए। कोरोना काल में काम छूटा तो वापस गांव लौटकर आए। आत्मनिर्भर मप्र 2023 के तहत आजीविका मिशन इनकी मदद के लिए आग आई है। अब यह लोग परंपरागत चौक छोड़कर इलेक्ट्रिक चौक से काम रहे हैं। परिवार के अलावा गांव में दूसरे लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं।


आजीविका मिशन के डीपीएम डॉ. एसके मुदगल के मुताबिक शासन ने गांवों में रोजगार बढ़ाने और लोकल में बने सामान की ब्रांडिंग करने के लिए आत्म निर्भर श्योपुर अभियान चलाया है। इसी के तहत आजीविका मिशन के विशेषज्ञ गांव-गांव पहुंचे। यहां देखा कि जिले में कुम्हार मिट्टी से कई तरह के आकार देते हैं, लेकिन परंपरागत चौक होने से काम काफी धीमा होता है। इसलिए उन्होंने कुम्हारों को हाईटेक करने की योजना तैयार की।

प्रशासन ने जिले में मकड़ावदा, मानपुर, धीरोली, ढोढर, ललितपुरा, बरगवां, कराहल, लाडपुरा, खितरपाल, अगरा सहित अन्य गांवों में आधा सैकड़ा से अधिक कुम्हारों को परंपरागत चौक से छुटकारा दिलाया है। इन्हें इलेक्ट्रिक चौक दिलाई गई है। एक चौकी की कीमत आठ से 10 हजार रुपये है।

परंपरागत चौक चलाने से जहां सीने में दर्द होने के कारण काम नहीं हो पाता था। इलेक्ट्रिक चौक बिजली से चलती है। परंपरागत चौक से दिनभर में 200 से 250 कुल्हाड़, 30 से 35 मटका तैयार करते थे। इलेक्ट्रिक चौक से एक दिन में 500 से 800 कुल्हड़ बना रहे हैं। काम बढ़ने से गांव में दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं।

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