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कविता दीक्षित उन संवेदनशील महिलाओं में एक हैं जो निर्धन परिवारों की लड़कियों का जीवन संवारने का प्रयास कर रही हैं।  मध्यप्रदेश के जमींदार घराने से ताल्लुक रखने वाली कविता देखती थीं कि गरीब परिवार की महिलाएं उनके घर में आकर इसलिए काम करती थीं ताकि बच्चों को पढ़ा सकें। कुछ अतिरिक्त आय कर सकें।

इन महिलाओं की मदद की भावना छोटी सी कविता के दिल में घर कर गई। जब वह हाईस्कूल में पढ़ती थीं, तब 20 गरीब लड़कियों को एक साल तक पढ़ाया और सभी परीक्षा में पास हुईं। इस पर एमपी के तत्कालीन सरकार ने सम्मानित किया था।

कविता की नारी शक्ति वुमेन इम्पावर संस्था में केवल नौ महिलाएं हैं, जो गृहिणी हैं। वे घरों में काम करने वाली महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाती हैं। उन्हें ट्रेनिंग दिलाने के लिए केंद्र खोला है, जहां उन्हें सिलाई, ब्यूटीशियन और कुकिंग सिखाई जाती है।

घर के काम से निकाल कर सुनीता चौधरी सिलाई सिखाती हैं तो प्रतिमा निगम ब्यूटीशियन। रेनू वर्मा कुकिंग सिखाती हैं और मोनिका सविता आर्ट एंड क्राफ्ट की क्लास लेती हैं। हफ्ते में पांच दिन रोजाना तीन घंटे की क्लास होती है। आज इस केंद्र में 30 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही हैं, इनमें से 20 से 22 लड़कियां रोज आती हैं। उनके सिखाने पर आने वाले खर्च की व्यवस्था ये नौ महिलाएं आपस में करती हैं

कविता का उद्देश्य इन लड़कियों को प्रशिक्षित करके उनसे उत्पाद बनवाना है। फिर तैयार उत्पादों को बाजार में भेजकर उससे होने वाली आय उनमें बांटना है। अभी ये लंबा सफर है। अभी उन्होंने इन्हीं लड़कियों से कपड़े के बैग बनवाए, जिन्हें मुफ्त बांटती हैं ताकि उनका शहर प्लास्टिक मुक्त होकर साफ सुथरा दिखे।

उनका समूह कूड़ा बीनने वाले छोटे बच्चों को भी पढ़ाती हैं। अभी पांच बच्चे ही आ रहे हैं। उनकी पूरी देखरेख करती हैं लेकिन वह कहती हैं कि गरीब घरों के बच्चों को पढ़ाना बेहद मुश्किल है क्योंकि पढ़ाई के बीच से ही उनके घर वाले ले जाते हैं।

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