उत्तराखंड एक्स्प्रेस में प्रकाशित
मुश्किल समय पर नए विकल्पों पर विचार करने के साथ नवाचार के लिए प्रेरित करता है। कोराेना महामारी में भी कई लोगों ने नई संभावनाओं पर विचार किया। ऐसा ही एक नौजवान ग्रामीणों के रोजगार का जरिया बन गया।

यह कहानी है नैनीताल जिले के बेतालघाट की। यहां के सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले गोधन बिष्ट इस समय गांव लौटे हैं। जहां उन्होंने ग्रामीणों को गांव में सहज उपलब्ध खजूर के पत्तों से झाडू बनाना सिखाकर आत्मनिर्भर बनाया है। जबकि ग्रामीणों को काेई ऐसी आय नहीं हो रही जिससे उनकी तकदीर बदल सके, लेकिन कुछ नहीं करने से तो अच्छा एक शुरुआत करना तो बेहतर ही है। जहां गोधन की मुहिम रंग ला रही है।

गोधन गांव आकार इन दिनों अपने गांव को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं। उन्होंने पहाड़ी कुच यानी झाडू बनाने का काम शुरू किया है। उनके इस कदम से ग्रामीण भी जुडे़ हैं। गांव के लोगों साथ महानगरों से लौटे प्रवासी भी बैठे-बैठे काम मिलने से काफी उत्साहित हैं। ग्रामीण भगत सिंह , प्रवासी महिला कौशल्या देवी का कहना है कि घर आने के बाद आय के स्रोत बंद हो गए थे। इस काम से कुछ सहारा मिलना शुरू हुआ है।

जार में झाड़ू की 60 रुपये के मुकाबले सभी लाभ जोड़कर इस झाडू की कीमत 30 रुपये रखी गई। तो बाजार से भी डिमांड मिलने लगी। अब घर बैठे रोजगार को बड़े स्तर पर करने का प्लान है। इससे ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिलेगा तो पलायन भी रूक सकेगा।

गांव निवासी गोधन सिंह उर्फ रवि के अनुसार झाड़ू बनाने में 12 महिलाओं को रोजगार मिला है बल्कि एक महिला औसतन एक दिन में 20 झाड़ू बना रही है। करीब दो सौ झाड़ू रोज बनाए जा रहे हैं। एक महिला करीब दो ढाई सौ रुपये की रोजना कमाई कर रही हैं।

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