वर्तमान में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च -जेएनसीएएसआर) में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत प्रोफेसर कनिष्क बिस्वास ने रसायन विज्ञान में प्रतिष्ठित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्त किया है। उन्हें यह पुरस्कार ठोस –अवस्था अकार्बनिक रसायन (सॉलिड-स्टेट अकार्बनिक केमिस्ट्री) और ताप- विद्युतीय ऊर्जा रूपांतरण (थर्मोइलेक्ट्रिक एनर्जी कन्वर्जन) के क्षेत्र में उनकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी (2021) खोजों के लिए दिया गया है। उनके शोध में सीसे (लेड–पीबी) मुक्त उच्च कार्यनिष्पादन वाला ताप- विद्युतीय पदार्थ (थर्मो- इलेक्ट्रिक मैटिरियल) विकसित करने के लिए अकार्बनिक ठोस पदार्थों की संरचना और गुणों के बीच संबंधों की ऐसी मौलिक समझ शामिल है, जो कुशलतापूर्वक अपशिष्ट गर्मी को ऊर्जा में परिवर्तित कर सकती है और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों में जिसका अनुप्रयोग किया जा रहा है।
मौलिक और व्यावहारिक रासायनिक सिद्धांतों का उपयोग करते हुए, कनिष्क बिस्वास ने एक क्रिस्टलीय अकार्बनिक ठोस में परमाणु क्रम और परिणामी इलेक्ट्रॉनिक अवस्था निरूपण के नियंत्रण के माध्यम से एक अभूतपूर्व ताप-विद्युतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) प्रदर्शन हासिल किया है, और साथ ही इसके इलेक्ट्रॉनिक परिवहन को बढ़ाकर उसकी तापीय (थर्मल) चालकता को कम किया है। उनका यह शोध इस वर्ष विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
रासायनिक संयुग्मन पदानुक्रम (केमिकल बॉन्डिंग हायार्की), लौहविद्युतीय (फेरोइलेक्ट्रिक) अस्थिरता, और धातु चाकोजेनाइड्स नामक रासायनिक यौगिकों के एक वर्ग में परमाणुओं के साथ तापविद्युतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) गुणों को सही स्तर पर लाने (ट्यून करने) के लिए उनकी अभिनव रणनीतियों ने नए प्रतिमानों को पेश करने वाले अकार्बनिक ठोस-अवस्था रसायन शास्त्र की सीमाओं का विस्तार किया है। उपयोग की गई समस्त ऊर्जा का लगभग 65% अपशिष्ट ऊष्मा के रूप में अपरिवर्तनीय रूप से नष्ट हो जाता है। किसी अकार्बनिक ठोस के लिए ऐसा कर पाना एक सपना ही था जिसमे नष्ट हो चुकी ऊष्मा से कुशलतापूर्वक पुनः बिजली प्राप्त हो सके और जिसका बाद में हमारे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, घरेलू उपकरणों, वाहनों और छोटे औद्योगिक उपकरणों को बिजली देने के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है। कनिष्क बिस्वास द्वारा खोजी गई तापविद्युतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) सामग्री अपशिष्ट गर्मी को सीधे और उत्परिवर्तनीय रूप से बिजली में परिवर्तित कर सकती है, और यह भविष्य के ऊर्जा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अलावा, तापविद्युतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) ऊर्जा रूपांतरण में कार्बन मोनो ऑक्साइड (सीओ) अथवा कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) जैसी किसी खतरनाक गैस का उत्सर्जन नहीं होता है। जिससे प्रो. बिस्वास की प्रयोगशाला में निर्मित उच्च-कार्यक्षमता वाली ताप विदुतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) सामग्री तापीय (थर्मल), इस्पात (स्टील), रसायन और परमाणु जैसे बिजली संयंत्रों से लेकर ऑटोमोबाइल, अंतरिक्ष मिशन से लेकर ग्रामीण भारत के घरेलू चूल्हों तक में अपशिष्ट गर्मी से विद्युत ऊर्जा रूपांतरण में लाभप्रद सिद्ध होगी।
श्री कनिष्क कोलकाता के पास एक छोटे से शहर हाबरा के रहने वाले हैं, और विज्ञान के प्रति उनका प्रेम बहुत पहले ही विकसित हो गया था। जादवपुर विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में ऑनर्स के साथ, उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर से एमएस और पीएचडी किया है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, शिकागो से अपने विज्ञान विशारद के पश्चात (पोस्टडॉक्टरल) शोध के दौरान, उन्होंने तापीयविद्युत (थर्मोइलेक्ट्रिक) पर अपने ध्यान का क्षेत्र विकसित किया। कनिष्क बिस्वास के नाम कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) से अपने स्वतंत्र करियर में ठोस –अवस्था अकार्बनिक रसायन (सॉलिड-स्टेट अकार्बनिक केमिस्ट्री) और ताप- विद्युतीय ऊर्जा रूपांतरण (थर्मोइलेक्ट्रिक एनर्जी कन्वर्जन) पर जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसाइटी और एंजवेन्टे केमी जैसे उच्चतम गुणवत्ता वाली 10 से अधिक रसायन विज्ञान पत्रिकाओं में 165 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। उनके कुल उद्धरण और एच-इंडेक्स क्रमशः 13650 और 50 हैं। उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से स्वर्ण जयंती फेलोशिप मिली है। वह रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (एफआरएससी), ब्रिटेन में आमंत्रित फेलो हैं। वह एसीएस एप्लाइड एनर्जी मैटेरियल्स, एसीएस, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में कार्यकारी संपादक और कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में संपादकीय सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में भी कार्यरत हैं।