एक ऐतिहासिक कदम में, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने लेह-लद्दाख के हिमालयी इलाकों में बंजर भूमि पर बांस के पौधे लगाकर हरित क्षेत्र विकसित करने की पहली पहल शुरू की। केवीआईसी और लेह-लद्दाख के वन विभाग ने आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के सहयोग से एक संयुक्त अभ्यास में लेह के चुचोट गांव में 2.50 लाख वर्ग फुट से अधिक बंजर वन भूमि में बांस के 1,000 पौधे लगाए। यह भूमि अब तक बेकार पड़ी थी। ये कार्य स्थानीय पार्षदों, ग्राम सरपंच और आईटीबीपी अधिकारियों की उपस्थिति में इस बांस वृक्षारोपण अभ्यास का शुभारंभ किया।
भारतीय सेना द्वारा लेह में स्थित अपने परिसर में बांस के 20 विशेष पौधे लगाए जाने के तीन दिन बाद यह घटनाक्रम सामने आया है। भारतीय सेना को ये पौधे केवीआईसी ने उपहार में दिए थे। केवीआईसी के प्रोजेक्ट बोल्ड (बैंबू ओएसिस ऑन लैंड इन ड्राउट) के तहत बांस के पौधे लगाए गए हैं, जो कि मरुस्थलीकरण को रोकने, भूमि और पर्यावरण की रक्षा करने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप है। प्रोजेक्ट बोल्ड “खादी बांस महोत्सव” का एक हिस्सा है जिसे “आजादी का अमृत महोत्सव” मनाने के लिए शुरू किया गया है।
लेह में बांस के पौधों का यह खंड स्थानीय ग्रामीण और बांस आधारित उद्योगों की मदद करके विकास का एक स्थायी मॉडल तैयार करेगा। मठों में बड़ी मात्रा में अगरबत्ती का इस्तेमाल किया जाता है जो बड़े पैमाने पर अन्य राज्यों से लाए जाते हैं। इन बांस के पेड़ों का उपयोग लेह में स्थानीय अगरबत्ती उद्योग के विकास के लिए किया जा सकता है। यह अन्य बांस आधारित उद्योगों जैसे फर्नीचर, हस्तशिल्प, संगीत वाद्ययंत्र और पेपर पल्प की मदद करेगा और इससे स्थानीय लोगों के लिए स्थायी रोजगार पैदा होगा। बांस के अपशिष्ट का उपयोग चारकोल और ईंधन ब्रिकेट बनाने में किया जा सकता है जिससे लेह में कठोर सर्दियों के दौरान ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। इसके अलावा, बांस अन्य पौधों की तुलना में 30% अधिक ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता है जो ऊंचाई वाले क्षेत्रों में एक अतिरिक्त लाभ है जहां हमेशा ऑक्सीजन की कमी होती है।
सक्सेना ने कहा, “इसके अलावा, केवीआईसी ने लेह में बांस के रोपण के लिए मानसून का मौसम चुना ताकि पौधों को जड़ प्रणाली विकसित करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके और वे इतने मजबूत हो जाएं कि आने वाले महीनों में बर्फबारी तथा सर्द हवा से बच सकें।” उन्होंने कहा कि इनमें से अगर 50 से 60 प्रतिशत बांस के पौधे भी बच गए तो केवीआईसी अगले साल लेह-लद्दाख क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बांस का रोपण करेगा।
केवीआईसी ने प्रोजेक्ट बोल्ड के तहत अब तक चार जगहों पर 17.37 लाख वर्ग फुट शुष्क भूमि में 12,000 बांस के पौधे (लेह में 1,000 सहित) लगाए हैं। इन जगहों में – उदयपुर का निचला मंडवा गांव, अहमदाबाद का धोलेरा गांव, जैसलमेर जिले का तनोट गांव और लेह का चुचोट गांव शामिल हैं।