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धातुओं की अनुपलब्धता वाले ऐसे सबसे धातु-निर्धन पुराने जिन तारों का जन्म उनसे भी पहले के तारों के  विस्फोट के उत्सर्जन की सामग्री से हुआ है,  में भारी धातुओं की प्रचुरता ने लंबे समय तक खगोलविदों को परेशान ही किया है। क्योंकि तारों (न्यूक्लियोसिंथेसिस) के भीतर परमाणु संलयन द्वारा रासायनिक तत्वों की प्रतिक्रिया की पहले से ही ज्ञात प्रक्रियाएं इसकी व्याख्या नहीं कर सकती हैं। वैज्ञानिकों ने अब आई-प्रोसेस नामक न्यूक्लियोसिंथेसिस प्रक्रिया में इस बहुतायत का रहस्य ढूंढ लिया है।

कार्बन की वृद्धि दर्शाने वाले धातु-निर्धन तारे जो कार्बन की, तकनीकी रूप से कार्बन एन्हांस्ड मेटल पुअर (सीईएमपी) तारे कहलाते हैं, जो महा विस्फोट (बिग बैंग) के बाद बनने वाले पहले तारों की उत्सर्जित सामग्री से बने थे, में प्रारंभिक गेलेक्टिक रासायनिक विकास के रासायनिक लक्षण मिलते हैं। इन धातु-निर्धन सितारों के निर्माण  की जांच करना जो कार्बन में वृद्धि के साथ-साथ निर्दिष्ट भारी तत्वों को प्रदर्शित करते हैं, से ब्रह्मांड में तत्वों की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने में मदद मिल सकती है।

वैज्ञानिकों ने पहले पाया कि भारी तत्व मुख्य रूप से न्यूक्लियोसिंथेसिस की दो प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं- धीमी और तीव्र न्यूट्रॉन-कैप्चर प्रक्रियाएं जिन्हें क्रमशः एस और आर प्रक्रियाएं कहा जाता है। माना जाता है कि एस-प्रोसेस तत्व तारकीय विकास के अंतिम चरण की ओर कम और मध्यवर्ती द्रव्यमान सितारों में उत्पन्न होते हैं। आर-प्रक्रिया के प्रस्तावित स्थल सुपरनोवा और न्यूट्रॉन स्टार विलय जैसी बाहरी घटनाएं हैं। सीईएमपी सितारे एस-प्रोसेस और आर-प्रोसेस तत्वों के संवर्द्धन दिखाते हुए सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर सितारों के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि, सीईएमपी सितारों का एक और आश्चर्यजनक उपवर्ग है, जिसे सीईएमपी-आर/एस सितारों के रूप में जाना जाता है, जो एस- और आर-प्रक्रिया दोनों तत्वों की वृद्धि को प्रदर्शित करता है, जिसकी निर्माण/उत्पादन प्रक्रिया एक पहेली बनी हुई थी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) से प्रो अरुणा गोस्वामी के भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह जिसमें उनके शोधार्थी छात्र पार्थ प्रतिम गोस्वामी और परा स्नातक के छात्र राजीव एस राठौर ने हाल ही में जर्नल ‘एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (ए एंड ए) में प्रकाशित एक अध्ययन में इस पहेली को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। इस पत्र में, उन्होंने पाया है कि एक मध्यवर्ती प्रक्रिया जिसे उन्होंने एस -प्रक्रिया और आर -प्रक्रिया के बीच न्यूट्रॉन घनत्व मध्यवर्ती पर संचालित आई -प्रक्रिया कहा है, सीईएमपी –आर/एस  सितारों के अजीबोगरीब बहुतायत पैटर्न के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर/एस सितारों के बीच अंतर करने के लिए बेरियम, लैंथेनम और यूरोपियम की प्रचुरता के आधार पर एक नया तारकीय वर्गीकरण मानदंड भी सामने रखा है।

टीम ने भारतीय खगोलीय वेधशाला में 2-मी हिमालय चंद्र टेलीस्कोप (एचसीटी), चिली के ला सिला में यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला में 1.52-मीटर टेलीस्कोप और 8.2-मी जापान के राष्ट्रीय खगोलीय वेधशाला द्वारा संचालित मौनाके, हवाई द्वीप के शिखर पर सुबारू टेलीस्कोप का उपयोग करके हासिल किए गए पांच सीईएमपी तारों के उच्च गुणवत्ता और  उच्च रिज़ॉल्यूशन स्पेक्ट्रा का विश्लेषण किया।

इस विषय पर उपलब्ध साहित्य में वर्णित सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर/एस सितारों के एक बड़े नमूने की मदद से, आईआईए टीम ने सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर/एस सितारों के लिए विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले विभिन्न मानदंडों का गंभीर विश्लेषण किया है। उन्होंने पाया कि मौजूदा वर्गीकरण मानदंडों में से कोई भी सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर/एस सितारों को अलग करने में पर्याप्त सक्षम/कुशल नहीं था और इसलिए इस अंतर को भरने के लिए नए मानदंड सामने रखे।

पार्थ प्रतिम गोस्वामी ने कहा, “वर्गीकरण की यह योजना तीन बहुत महत्वपूर्ण न्यूट्रॉन-कैप्चर तत्वों बेरियम, लैंथेनम और यूरोपियम के बहुतायत अनुपात पर आधारित है और सीईएमपी-एस और सीईएमपी-आर/एस सितारों को अलग करने के लिए इसका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है”।

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