वन धन विकास योजना से जनजातीय नव उद्यमियों को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन और मदद मिल रही है। 18 महीनों से भी कम समय में 33,360 वन धन विकास केंद्र खोले गए हैं। ट्राइफेड ने 31 मार्च 2021 तक 300 वानिकी क्षेत्रों में प्रत्येक में 2,224 वन धन विकास केंद्रों को अपनी मंजूरी दी है। वन धन विकास केंद्रों की स्थापना, एमएफपी कार्यक्रम के लिए एमएसपी और हथकरघा तथा हस्तशिल्प उत्पादों समेत विभिन्न क्षेत्रों में ट्राइफेड द्वारा किए जा रहे प्रयासों में अब तक की प्रगति के संबंध में आज एक वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ट्राइफेड के महानिदेशक श्री प्रवीर कृष्णा ने यह बातें कहीं।
उन्होंने बताया कि राज्यों की चिन्हित एजेंसियों और क्रियान्वयन एजेंसियों की सहायता से इसे लागू करने और इसे अपनाए जाने के संदर्भ में बीते 18 महीनों में जबरदस्त सफलता मिली है। देश के विभिन्न भागों से इस योजना की सफलता की कहानियां सामने आई हैं।
वन धन विकास केंद्र के प्रारूप के संबंध में बात करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक वन धन विकास केंद्र में 20 जनजातीय सदस्य होते हैं और 15 ऐसे केन्द्रों से मिलकर वन धन विकास केंद्र का एक क्लस्टर बनता है। वन धन विकास केन्द्रों के यह क्लस्टर्स 23 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में वन क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 6,67,000 जनजातीय लोगों को बड़े पैमाने पर आजीविका के अवसर, उन्हें बाजार से जुड़ने के साथ-साथ उद्यमिता के अवसर उपलब्ध कराएंगे। वन धन विकास योजना से अब तक कम से कम 50,00,000 लोग लाभान्वित हुए हैं। लक्षित 50,000 वन धन विकास केन्द्रों में से बचे हुए 16,640 वन धन विकास केन्द्रों को ट्राइफेड की ‘संकल्प से सिद्धी’ पहल के अंतर्गत राज्यों की कार्यान्वयन एजेंसियों और चिन्हित प्रमुख एजेंसियों के साथ लगभग 600 वन धन विकास केंद्र क्लस्टर्स में सम्मिलित किया जायेगा, जिनके संबंध में मंज़ूरी अगले 3 महीनों में मिल जाने की संभावना है।
वन धन जनजातीय उद्यमिता कार्यक्रम के संबंध में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत ट्राइफेड जनजातीय लोगों के लिए रोजगार सृजन करने और उनकी आय में वृद्धि करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कर रहा है जिसमें वन धन जनजातीय उद्यमिता एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जिसके अंतर्गत एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया गया जिसका नाम है मैकेनिज़्म फॉर मार्केटिंग ऑफ माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस (एमएफ़पी) यानि लघु वन उत्पादों के विपणन का एक तंत्र। इसे एमएफ़पी योजना के लिए वैल्यू चेन के विकास और न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से शुरू किया गया है। वन धन जनजातीय उद्यमिता भी इसी के समान एक विशेष योजना है जिसे मूल्य संवर्धन और वन धन केंद्र की स्थापना द्वारा छोटे-छोटे वन उत्पादों की ब्रांडिंग और उनके विपणन की सुविधा जनजातीय लोगों के लिए उपलब्ध कराई जाती है ताकि वनों में रहने वाली आबादी की आजीविका और जीवन शैली में सुधार हो सके।
उन्होने ने इस अवसर पर घोषणा की कि जनजातीय मामलों से जुड़ी सभी योजनाओं और पहलों को जल्द ही एक नई योजना के अंतर्गत लाया जाएगा जिसका नाम होगा “जनजातीय कल्याण योजना”।
उन्होंने बताया कि वन धन विकास केंद्रों की स्थापना के साथ उत्तर पूर्वी क्षेत्र 80% क्षमता और सक्रियता से इस योजना में सबसे बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश भी ऐसे राज्य हैं जहां पर इस योजना को अपनाया गया और इसके परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं। सभी राज्यों में मणिपुर ऐसा चैंपियन राज्य बन कर उभरा है जहां वन धन कार्यक्रम स्थानीय जनजातीय लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा स्रोत बना। उन्होंने बताया कि अक्टूबर 2019 में जब से यह योजना शुरू की गई तब से अब तक राज्य में 100 वन धन विकास केंद्र क्लस्टर्स स्थापित किए गए जिनमें से 77 वर्तमान में संचालित हैं। इन वन धन विकास क्लस्टर्स के अंतर्गत 1500 वन धन विकास केंद्र आते हैं, जो 30,000 जन जातीय नव उद्यमियों को लाभान्वित कर रहे हैं। यह नव उद्यमी लघु वन उत्पादकों से उनके उत्पाद लेकर उनके प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन की प्रक्रिया में लगे हैं। इस योजना की एक अच्छी बात यह है कि इसको बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है और इसको देश के अन्य भागों में एक मॉडल के रूप में संचालित किया जा सकता है। श्री प्रवीर कृष्णा ने इस अवसर पर कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के वन उत्पादों के घरेलू और विश्व के बाजारों में विपणन के लिए जल्द ही 150 करोड़ रुपए का एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस अभियान की सबसे अच्छी खूबी यह है कि इसने वनों को बाजार उपलब्ध कराया है। अनेक जनजातीय उद्यमी बाजार से जुड़ गए हैं। इसके अंतर्गत फ्रूट कैंडी (आंवला, अनन्नास, जंगली सेब, अदरक, अंजीर, इमली); जैम (अन्ननास, आंवला, आलू बुखारा), जूस (अन्ननास, आंवला, जंगली सेब, आलू बुखारा, लेटकू); मसाले (दालचीनी, हल्दी, अदरक); अचार (बांस, किंग चिली); प्रसंस्कृत गिलोय आदि वन उत्पादों को प्रसंस्कृत और उनकी पैकिंग कर उन्हें बाज़ारों तक पहुंचाया जाता है। साथ ही ऐसे उत्पादों को TribesIndia.com के ऑनलाइन मंच और ट्राइब्स इंडिया के विपणन केन्द्रों द्वारा भी बेचा जाता है। वन धन कार्यक्रम की सफलता से राज्य सरकारें भी प्रेरित हुईं और उन्होंने एमएफ़पी के लिए एमएसपी लागू किया जिससे एमएफपी की 48 क़िस्मों को जनजातीय लोगों से कोविड महामारी के दौर में भी खरीदा गया जिसकी कीमत 2000 करोड़ रुपये से अधिक है। यह पैसा उन्हें 10 महीनों से भी कम समय में सीधे उनके खाते में भेजा गया। यह पिछले 5 वर्षों में की गई 128 करोड़ रुपये की खरीद से बहुत अधिक है, वह भी एक राज्य से।
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि ट्राइफेड, विदेश मंत्रालय की मदद से भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों के माध्यम से भारत के वन उत्पादों के लिए विदेशों में सुव्यवस्थित बिक्री का मंच उपलब्ध कराने के लिए भी प्रयास कर रहा है। उन्होंने बताया कि अनेक भारतीय हवाई अड्डों, मेट्रो रेल स्टेशनों और सरकारी परिसरों ने ट्राइब्स इंडिया के शोरूम खोलने के लिए सस्ते दर पर स्थान उपलब्ध कराये हैं।
श्री कृष्ण ने कहा कि ट्राइफेड ने अब “संकल्प से सिद्धी”-विलेज एंड डिजिटल कनेक्ट ड्राइव शुरू किया है। 1 अप्रैल 2021 से शुरू हुई इस मुहिम के अंतर्गत 150 टीमें गठित की गई हैं जिनमें प्रत्येक टीम में ट्राइफेड से लेकर राज्य की क्रियान्वयन एजेंसी, मार्गदर्शक एजेंसी और साझेदार के 10 सदस्य होंगे। प्रत्येक टीमें 10-10 गांवों का दौरा करेंगी। इसके अंतर्गत अगले 100 दिनों में प्रत्येक क्षेत्र में 100 गांव और पूरे देश में 1500 गांवों को कवर किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य इन गांवों में वन धन विकास केन्द्रों को सक्रिय किया जाना है। इसके अंतर्गत वन धन इकाइयों से अगले 12 महीनों में 200 करोड़ रुपए की बिक्री का लक्ष्य रखा गया है। दौरा करने वाली टीमें संभावित वन धन विकास केन्द्रों के लिए स्थान का भी चिन्हीकरण करेंगी और उन्हें टीआरआईएफ़ओओडी, एसएफ़यूआरटीआई इकाइयों से भी जोड़े जाने के लिए उन्हें शॉर्ट लिस्ट करेंगी।

स्रोत <pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1713426>