अमर उजाला में प्रकाशित
दोनों बहनों ने बताया कि उनके पिता निजी स्कूल की बस चलाते थे। इसी से वह अपनी परिबार का भरण पोषण कर रहे थे। कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद होते ही पिता की नौकरी भी चली गई। पिता बीमारी से ग्रस्त भी हैं। ऐसे में घर पर मौजूदा ऑटो पर नजर पड़ी। बंजीत और दविंदर ने कहा कि हिम्मत कर पिता से ऑटो चलाने की अनुमति मांगी।
दोनों ने पहले ऑटो चलाना सीखा ओर परिवार का खर्च चला रही हैं। अब दो माह से ऑटो चलाकर घर का खर्च निकालने और पढ़ाई साथ-साथ कर रही हैं। जम्मू-कश्मीर में ये दोनों बेटियां पहली महिला ऑटो चालक बन गई हैं। एक कॉलेज तो दूसरी स्कूल की छात्रा है। सवारियां मिलने पर ऑटो चलाती हैं और खाली वक्त के दौरान ऑटो में पढ़ाई करती हैं। कॉलेज में स्नातक भाग दो की छात्रा बंजीत कौर के पास बाकायदा लाइसेंस है जबकि दसवीं की परीक्षा देने की तैयारी कर रही दविंदर कौर ने लाइसेंस के लिए आवेदन कर रखा है।
एक बेटी एनसीसी कैडेट भी है। उसने बताया कि दोनों बहनों का सपना सेना में शामिल होकर देश सेवा करना है। उससे पहले घर की जिम्मेदारी भी है। बंजीत ने कहा कि सेना में भी चालकों की जरूरत होती है। इसके लिए वह प्रयास कर रही हैं। उम्मीद है कि एक दिन कामयाब होकर मिसाल कायम करेंगी।
उनके पिता ने बताया कि उन्होंने खुद ऑटो चालक होने के बावजूद बेटियों को ऑटो चलाने की अनुमति दी। उन्होंने बेटियों को समझाया कि लोगों की परवाह किए बिना अपना काम करें। किसी की बातों की तरफ ध्यान नहीं देना है। उनके दिमाग में सरकार की तरफ से किए गए आह्वान बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात रहती है। उन्होंने कहा कि बेटियों का आत्मनिर्भर बनना बेहद जरूरी है।