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शहर में अब्दुल्ला कॉलेज के पास बसी मलिन बस्ती में कई परिवार हर रोज कूड़ा-कचरा बीनकर दो समय के भोजन की जुगाड़ करते हैं। कुछ महिलाएं घरों में चौका-बर्तन करती हैं। बच्चे भी इनका हाथ बंटाते थे। इतना पैसा नहीं था कि बच्चों को स्कूल भेज सकें, न ही इतनी समझ कि सरकारी मदद ले सकें। आजाद फाउंडेशन की निदेशक शाजिया सिद्दीकी की प्रेरणा से इन परिवारों में बच्चों को शिक्षित कर उनका जीवन संवारने की चाह जागी। इसी का परिणाम है कि 43 बच्चों की पढ़ाई शुरू हो गई। इनका सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया गया। अब संस्था की ओर से मलिन बस्ती में ही इन्हें पढ़ाया जा रहा है।

शिक्षित युवा अपने खर्चे पर प्रतिदिन पाठशाला लगाते हैं। बच्चों को यहां तक लाने में संस्था से जुड़े युवाओं ने संघर्ष भी खूब किया। शाजिया बताती हैं कि जिन डाक्टर, प्रोफेसरों के घरों में बच्चे काम करते थे, वे विरोध में उतर आए। धमकियां देने लगे, लेकिन मुहिम जारी रही। कोरोना संकट में भी बच्चे हर रोज पढऩे आते हैं। अब तो महिलाएं भी यहां पढऩे आ रही हैं। इन्हें यहां तक लाने में शाहनीला, डा. जुनेद आलम, जैसों का सहयोग रहा।

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