न्यूज १८ में प्रकाशित
कभी देश के लिए मेडल जीतने वाली ये खिलाड़ी जीवनयापन के लिए एक स्कूल में बतौर कोच तैनात थी, लेकिन कोरोनाकाल में उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. ऐसे में जब उनके सामने रोज़ी रोटी का संकट आया तो उसने ढाबा खोलने का सोचा ओर उन्हें उम्र के आखिरी पड़ाव में आत्मनिर्भर बना दिया. इस महिला ने उम्र के आखिरी पड़ाव में आत्मनिर्भर बनते हुए अपना ढाबा खोल दिया. एक महीने के अंदर ही दूर-दूर से लोग महिला के ढाब को खोजते हुए पहुंचते हैं।

आगरा में अम्मा के ढाबे के बाद मेरठ में इस खिलाड़ी महिला का ढाबा आजकल ख़ासा चर्चा का विषय बना हुआ है।  इस ‘खिलाड़ी अम्मा’ का नाम श्वेता है।  श्वेता का कहना है कि वो उम्र के आखिरी पड़ाव में है तो क्या हुआ उसकी जीतने वाली खेल भावना हमेशा ज़िंदा रहेगी।  श्वेता को जब कहीं से मदद नहीं मिल रही थी तो एक रिटायर्ड फौजी इस खिलाड़ी के लिए मसीहा बनकर आया. फौजी ने अपनी दुकान के सामने श्वेता को किचन खोलने की अनुमति दी और आज उम्र के आखिरी पड़ाव में जि़न्दगी की जंग लड़ रही है।

श्वेता ने कभी 1984 में देश के लिए मेडल जीता था. लेकिन आज जीवन के खेल में जीत हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. ये महिला अपनी आप बीती सुनाते सुनाते रो पड़ती है, लेकिन कुछ ही देर में वो अपने आंसू पोंछकर अपने हाईवे किनारे वाले किचन में ग्राहकों के आर्डर लेने लगती है. राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रही इस बुज़ुर्ग महिला की जीवटता की कहानी आजकल इलाके के लोगों की ज़ुबान पर हैं।  सब कह रहे हैं कि आगरा के अम्मा ढाबे के बाद अब मेरठ का ये ढाबा खिलाड़ी ढाबा बन गया है।  ऐसी खिलाड़ी अम्मा पर सभी को नाज़ है।
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