बनभारत में प्रकाशित
मुर्गी और बतख के चूजों ने महिलाओं की तकदीर बदलने में बड़ी भूमिका निभायी, जबकि पावर टिलर की मदद से छोटे और मध्यम किसानों की आय में भी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। राज्य के अति नक्सल प्रभावित खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के शिलापट गांव की कई महिलाएं बतख पालन के जरिए आत्मनिर्भर हो रही हैं. इसमें झारखंड लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) का भी पूरा-पूरा सहयोग मिल रहा है।
शिलापट गांव में कुछ वर्ष पहले तक बेरोजगारी का आलम था, थोड़ी-बहुत खेती से लोगों का किसी तरह गुजारा होता था. लेकिन, जेएसपीएलएस की मदद से गांव की समूह से जुड़ी महिलाओं ने बतख पालन शुरू किया और अब उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया है। बतख पालन में जुटी महिलाओं का कहना है कि शुरुआत में यह काम मुश्किलों भरा लगता था, लेकिन अब वे सभी प्रशिक्षित हो चुकी हैं और बतख पालन का अनुभव हो जाने से अच्छा खासा मुनाफा भी होने लगा है।
उन्होंने कहा कि उनकी ओर से उत्तम गुणवत्ता वाले बतख की प्रजाति को ग्रामीण महिलाओं को उपलब्ध कराया जाता है, जो एक वर्ष में करीब दो सौ अंडे देती हैं. इससे न सिर्फ ग्रामीणों को पौष्टिक आहार मिल रहा है, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि हो रही है. बतख पालन का व्यवसाय शुरू हो जाने से शिलापट गांव के लोग न सिर्फ स्वावलंबी बन रहे हैं, बल्कि यह गांव अब बतख के व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
इधर, खूंटी जिले के बम्हनी गांव की महिलाएं मुर्गी पालन का व्यवसाय अपनाकर सशक्त बन रही हैं। गांव की महिलाएं आज परिवार की तरक्की मे पुरुषों की भागीदार बन रही हैं. मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू करने के बाद उनके जीवन मे बड़ा बदलाव आया है। ग्रामीण महिलाओं ने देसी मुर्गियों के साथ अधिक गुणवत्ता वाले कड़कनाथ भी पाल रखे हैं. इससे इन्हें न सिर्फ पौष्टिक आहार मिल रहा है, बल्कि उसे बेचकर ये अपनी छोटी-बड़ी जरूरतें भी पूरी कर रही हैं।