वर्षों पहले, भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के दौरान, महात्मा गांधी द्वारा भारत के स्वदेशी श्रमिकों को सुरक्षित करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए कई आंदोलन शुरू किए गए थे। गांधीवादी स्वदेशी आंदोलन भारतीय सामानों को बढ़ावा देने और विदेशी लोगों के बहिष्कार के इसी विचार के साथ गूंजता रहा। इससे भारतीय कारीगरों को अपने कौशल को आगे बढ़ाने और अपनी आजीविका कमाने का मौका मिला।
जबकि यह हर दौर में एक नए तरीके चर्चा में बनी रही है। राजनीतिक आह्वान से देखें तो आत्मनिर्भरता कोई शिगूफा नहीं है, बल्कि बड़ी प्राचीन ‘मानव कामना’ है। मानव सभ्यता के समय से ही आत्मनिर्भरता मानव की प्रमुख कामना रही है ।
नीतिकारों से लेकर मानवशास्त्रियों तक सब ने इसका गुणगान किया है और एक तरफ आत्म-निर्भरता’ को कष्ट का कारण माना है। सभी नर-नारी कामना करते हैं कि किसी पर निर्भर न रहें, उन्हें किसी का मोहताज न होना पड़े।
इससे भारतीय संस्कृति और शिल्प को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी,जो की हमारे देश में ही विकसित हुई।
यह हमें हस्तनिर्मित वस्त्र और शिल्प उत्पादों की मांग करने वाले अंतर्राष्ट्रीय बाजारों का पता लगाने का एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। हमारे लिए, सबसे महत्वपूर्ण इस समय के दौरान हमारे कारीगरों के लिए स्थायी रोजगार पैदा करने में सक्षम होना है।
# वोकलफॉरलोकल # सपोर्टाइंडियनगुड्स # मेक इंडिया हमारे समय के हैशटैग हैं। हमारे देश में फैशन की दुनिया का नेतृत्व करने वाली भारतीय फैशन डिज़ाइन काउंसिल ने Covid19 में डरते समय कारीगरों को समर्थन देने के लिए एक फंड शुरू किया, उन्होंने हैशटैग भी शुरू किए जो वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाने में मदद कर रहे हैं।
यवि के डिजाइनर यादवी अग्रवाल कहते हैं, “शिल्पकारों के साथ काम करना, जो हमारे शिल्प को न केवल हमारे देश में लोकप्रियता हासिल करते हैं बल्कि स्थानीय उत्पादों के माध्यम से दुनिया भर में जागरूकता फैलाते हैं, निश्चित रूप से एक गर्व की बात है।”