दैनिक जागरण में प्रकाशित
गरीबी और बेरोजगारी की दहलीज पर खड़े एक मोहल्ले के चार दोस्तों (शरीफ अहमद, नूर आलम, जहूर आलम और कल्लू) ने अपनी सोच और जज्बे से तरक्की की नई इबारत लिखी है। किराए की जमीन पर ‘मुनाफे की खेती कर रहे हैं। वैज्ञानिक विधि से मौसमी- बेमौसमी सब्जियां उगा लाभ कमा रहे हैं। पिछले वर्ष 25 लाख रुपये की आमदनी हुई तो इस कोरोना काल में भी अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं।
इन दोस्तों की दास्तान फिल्मी कहानी से कम नहीं है। साथ ही इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर गृहस्थी में कदम रखा। नौकरी मिली न हिस्से में जमीन। हालात इतने बद्तर हुए कि भुखमरी की नौबत सामने आ गई। पर, हिम्मत नहीं हारी। इससे उबरने के लिए खेती से आय अर्जित करने का फैसला किया। जमीन किराए पर लेने की सोची तो धन की कमी आड़े आई। चारों ने पत्नियों के जेवर बेच रुपये इकट्ठा किए। ऐसे क्षेत्र में किराए पर जमीन ली जहां सिचाई की सुविधा थी। खेती की वैज्ञानिक विधि अपनाते हुए पिछले वर्ष बिथरिया में 27 एकड़ जमीन पर सब्जियों की खेती शुरू की।
पहले सीजन में लाभ मिला तो हौसला और बढ़ा। वर्ष के तीन सीजन में लगभग 25 लाख की बचत हो गई। इस साल भी भड़रिया में 19 एकड़ जमीन 6.50 हजार रुपये बीघे की दर से किराए पर ली और जुट गए हौसले के साथ। कोरोना काल में भी खेती की बदौलत अब तक करीब पांच लाख रुपये कमा चुके हैं। इनका साझा प्रयास आत्म निर्भर भारत की तस्वीर भी पेश कर रहा है।
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