पंजाब केसेरी में प्रकाशित
मुंबई की 27 साल की रेलू वासवे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं और खुद दो बच्चों की मां है, लाख परेशानियों के बाद भी लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हट रहीं। वह रोजाना 18 कि.मी. नाव चलाकर एक लंबा सफर तय करती हैं, ताकि आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद कर सके और उनतक अपनी सेवाएं पहुचा सकें। रेलू के पास गांव तक पहुंचने का सड़क मार्ग नहीं था इसलिए उन्होंने नाव के जरिए आदिवासी बच्चों व गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने का फैसला किया।

बसों तक पहुंचने के लिए भी गांव के लोगों को नांव का सहारा लेना पड़ता है ऐसे में रेलू ने इंतजार करने की बजाए खुद नाव चलाना बेहतर समझा। उन्होंने एक स्थानीय मछुआरे से नाव उधार ली और अपने काम पर निकल पड़ी। तमाम बधाएं आने के बाद भी रेलू के कदम नहीं डगमगाएं।

रेलू ने बताया कि आमतौर पर आदिवासी महिलाएं, गर्भवती व बच्चे अपने परिवार के साथ हमारे केंद्र पर आते थे लेकिन कोरोना के डर से उन्होंने आना बंद कर दिया। ऐसे में उन्होंने खुद बच्चों व महिलाओं तक भोजन ले जाने का फैसला किया।

वह लगातार 6 महीने से नर्मदा नदी पार करके अपनी ड्यूटी निभा रही हैं। यहां तक की नर्मदा नदी में बाढ़ आने के बाद भी उन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी और आदिवासियों तक भोजन व जरूरी सामान पहुंचाया। इस नेक काम के लिए रेलू का जितना शुक्रिया किया जाए वह कम ही है। समाज को रेलू जैसे लोगों की जरूरत है, जो बिना मतलब लोगों की सेवा करें।

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