दिल्ली हाट महोत्सव के इस संस्करण में जीआई उत्पादों ने अपने आपको एक प्रमुख स्थान पर स्थापित कर लिया है और 50 से ज्यादा पहचाने गए ऐसे उत्पादों को जनजातीय लोगों के द्वारा पूरे पंडाल में स्टालों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। कई दर्शकों द्वारा इन स्टॉलों पर बहुत ज्यादा दिलचस्पी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। इसके अतरिक्त, उत्तराखंड से 7 नए जीआई टैग किए गए उत्पादों का शुभारंभ किया गया। जिसमें एपन क्राफ्ट, टम्टा उत्पाद, रिंगल क्राफ्ट, थुलमा, भुटियादान कालीन, च्यौरा तेल और मुंशियारी राजमा शामिल हैं, जिनको ट्राइफेड द्वारा आदि महोत्सव में प्रचारित किए गए जनजातीय जीआई उत्पादों की संख्या को 66 तक लेकर जाते हुए जारी किया गया है।
श्री भास्कर खुल्बे द्वारा अधिकांश स्टालों पर जाकर वन धन प्राकृतिक और जैविक उत्पाद ,जनजातीय हस्तशिल्प और अन्य कलात्मक कृतियां आदि समृद्ध जनजातीय उत्पादों की सराहना की गई और जनजातीय उत्पादों के बीच भौगोलिक संकेत को बढ़ावा देने की कोशिश करने के साथ-साथ समृद्ध जनजातीय उत्पादों की भी सराहना की गई।
इस अवसर पर श्री खुल्बे ने कहा कि“मुझे इस बात की बहुत खुशी महसूस हो रही है कि ट्राईफेड ने जीआई टैग उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए और उसे एक ब्रांड में तब्दील करने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाया है, जिसके माध्यम से जनजातीय कारीगरों को सशक्त बनाया जा सके। पूरे देश के सभी जनजातीय कारीगरों को एक ही स्थान पर लाने की दिशा में आदि महोत्सव एक बेहतरीन उपाय है। मैं सभी दिल्ली निवासियों से आग्रह करता हूं कि वे इस अनूठे उत्सव में शामिल हों।“
जनजातीय इंडिया आदि महोत्सव में प्रदर्शित जीआई उत्पादों में राजस्थान ब्लू पॉटरी, कोटा का दरिया फैब्रिक, मध्य प्रदेश का चंदेरी और माहेश्वरी सिल्क, बाघ प्रिंट, ओडिशा का पट्टाचित्र, कर्नाटक का बिदरीवेयर, उत्तर प्रदेश का बनारसी सिल्क, पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग चाय,हिमाचल प्रदेश का काला जीरा, बहुत मसालेदार नागा मिर्च और उत्तर-पूर्व की बड़ी इलायची जैसी प्रसिद्ध और उत्तम वस्तुएं शामिल हैं।
इन जीआई उत्पादों के अतरिक्त, कोई भी व्यक्ति जनजातीय हस्तशिल्पों और उत्पादों और जैविक वस्तुओं की भी प्राप्ति कर सकते हैं-प्राकृतिक और प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले जनजातीय उत्पाद- जैसे वर्जिन नारियल तेल, जैविक हल्दी, सूखा आंवला, जंगली शहद, काली मिर्च, रागी, त्रिफला, मूंग दाल, उड़द दाल, सफेद सेम और दलिया जैसी मसूर के मिश्रण से लेकर कलाकृतियाँ जैसी चित्रकारी वाली शैली या पटचित्र; डोकरा शैली में दस्तकारी के आभूषणों से लेकर पूर्वोत्तर की वांचो और कोन्यक जनजातियों के मोतियों के हार तक, अर्थात् समृद्ध और जीवंत वस्त्र और रेशम; रंगीन कठपुतलियों और बच्चों के खिलौनों से लेकर पारंपरिक बुनाई जैसे डोंगरिया शॉल और बोडो बुनाई तक; बस्तर के लौह शिल्प से लेकर बांस के शिल्प और बेंत के फर्नीचर तक। आदि महोत्सव में कोई भी व्यक्ति जनजातीय लोगों के कलात्मक रूपों का नमूना प्राप्त कर सकता है और उनके व्यंजनों का आनंद भी प्राप्त कर सकता है।