कोविड-19 के संक्रमण से सुरक्षा के लिए रासायनिक कीटाणुनाशक और साबुन से बार-बार हाथ धोने से हाथ रूखे हो जाते हैं और कई बार उनमें खुजली भी होती है। इस समस्या से बचाने के लिए कई नये उपाय किए जा रहे हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित कई स्टार्ट-अप अब पारंपरिक रासायनिक-आधारित डेकोटेमिनेंट्स के लिए बहुत सारे व्यावहारिक विकल्प लेकर आए हैं जो सतहों और यहां तक कि माइक्रोकैविटी को भी कीटाणु रहित कर सकते हैं।

ये तकनीकें कुल 10 कंपनियों ने मुहैया करायी हैं जिन्हें सेंटर फोर ऑगेमेंटिंग वॉर विद कोविड-19 हेल्थ क्राइसिस (सीएडब्ल्यूएसीएच) के तहत कीटाणुशोधन और सैनिटाइजेशन के लिए मदद दी गयी थी। यह राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड (NSTEDB), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक पहल है जिसका सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईएनई), आईआईटी-मुंबई ने कार्यान्वयन किया है।

मुंबई आधारित स्टार्ट-अप इनफ्लोक्स वाटर सिस्टम्स ने कोविड-19 संदूषण से लड़ने की खातिर सतह और उपकरण कीटाणुशोधन के लिए एक प्रणाली का डिजाइन और विकसित करने के उद्देश्य से अपनी तकनीक में बदलाव किया। इस तकनीक को उन्होंने ‘वज्र’ नाम दिया है। यह स्टार्ट-अप जटिल प्रदूषित पानी और अपशिष्ट जल के शोधन की विशेषज्ञता रखता है। ‘वज्र केई’ सीरीज ओजोनपैदा करने वाले एक इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज, और यूवीसीलाइट स्पेक्ट्रम के शक्तिशाली रोगाणुनाशन प्रभावों को शामिल करके कई चरणों वाली एक कीटाणुशोधन प्रक्रिया से युक्त कीटाणुशोधन प्रणाली का इस्तेमाल करता है।

उन्होंने प्रति माह 25 सतह कीटाणुशोधन प्रणालियों के निर्माण के लिए खुद को तैयार किया, हर गुजरते महीने के साथ उत्पादन क्षमता को 25% तक बढ़ाने के लिए उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और रसद को सुव्यवस्थित किया। और यइस  परीक्षण के लिए आईआईटी बंबई और सीसीएमबी (हैदराबाद) के वायरोलॉजी लैब के साथ समन्वय किया है। यह नयी तकनीक, जहां कीटाणुनाशक सीधे हवा या ऑक्सीजन से उत्पन्न होता है, पारंपरिक रासायनिक-आधारित परिशोधन के लिए एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान करता है। और ये प्रणाली क्वारेंटाइन सुविधाओं, एंबुलेटरी केयर और उपकरण सतहों सहित कोविड-19 संक्रमित क्षेत्रों को तेजी से कीटाणुरहित कर सकती है। यह अभिनव माइक्रो-प्लाज्मा रोगाणुनाशन प्रणाली कॉम्पैक्ट और स्केलेबल मॉड्यूलर इकाइयां प्रदान करती है जो मजबूत, लचीली और ऊर्जा बचाने वाली हैं।

इस कीटाणुनाशक का उत्पादन ऑन-साइट किया जाता है, जिससे खतरनाक रसायनों के परिवहन, भंडारण और हैंडलिंग से जुड़ी दिक्कतें नहीं आतीं। ये परिशोधन प्रणालियां समान क्षमता वाली पारंपरिक प्रणाली से 10 गुना कम हैं, जिससे यह संसाधन की कमी के वातावरण के लिए उपयुक्त हैं। कंपनी ने पहले ही चुनिंदा क्रिटिकल केयर क्षेत्रों में रोगाणुनाशन के लिए अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्थाओं को खासतौर पर तैयार की गयी तकनीकें प्रदान की है।

चेन्नई आधारित स्टार्टअप माइक्रोगो ने एक मैकेनिकल हैंड सैनिटाइजिंग डिस्पेंसर मशीन तैयार किया है। यह मशीन टचलेस, रियल-टाइम मॉनिटरिंग के जरिए डैशबोर्ड के माध्यम से हैंड सैनिटाइजेशन के चरणों को निर्धारित करती है।

एसआईएनई, आईआईटी बंबई, एफआईआईटी, आईआईटी दिल्ली, एसआईआईसी, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास, वेंचर सेंटर पुणे, आईकेपी नॉलेज पार्क हैदराबाद, केआईआईटी-टीबीआई भुवनेश्वर जैसे प्रौद्योगिकी पौधशालाओं ने तकनीकी प्रगति को लेकर समय के हिसाब से प्रभावशाली सलाह दी है, सभी जरूरी दिशानिर्देशों का पालन करने, सहमति ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने आदि करने में स्टार्ट-अप का मार्गदर्शन किया है।

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