भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स –आईआईए ) के विक्रांत जाधव और उनके पीएचडी पर्यवेक्षक, अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने 2013 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा प्रक्षेपित (लॉन्च) किए गए गैया टेलीस्कोप का उपयोग अपनी उत्कृष्ट स्थिति सटीकता के साथ समूहों में ब्लू स्ट्रैगलर का चयन करने और यह समझने के लिए किया था कि अभी ऐसे कितने सितारे हैं, कहां पर हैं और कैसे बनते हैं?
उन्होंने पाया कि जिन समूहों को उन्होंने देखा और स्कैन किया उन 868 में से कुल 228 ब्लू स्ट्रैगलर्स हैं। ब्लू स्ट्रैगलर का यह पहला व्यापक विश्लेषण रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक नोटिस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इससे पता चला कि ये तारे मुख्य रूप से पुराने और बड़े तारा समूहों में ही मौजूद हैं और उनके अधिक द्रव्यमान के कारण वे समूहों के केंद्र की ओर अलग कर दिए गए हैं। शोधकर्ताओं ने नीले स्ट्रैगलर्स के द्रव्यमान की तुलना उन टर्नऑफ सितारों के द्रव्यमान से की जो क्लस्टर में सबसे बड़े पैमाने पर ‘सामान्य’ सितारे हैंI साथ ही उन्होंने इनके संभावित निर्माण तंत्र का भी पूर्वानुमान लगाया ।
इस कार्य का नेतृत्व करने वाले शोष छात्र विक्रांत जाधव ने कहा, “कुल मिलाकर, हमने पाया कि 54% से अधिक ब्लू स्ट्रैगलर एक करीबी द्वि-ध्रुवीय (बाइनरी) साथी सितारे से बड़े पैमाने पर द्रव्यमान स्थानांतरण के माध्यम से बनते हैं और 30% ब्लू स्ट्रैगलर आपसी टकराव के माध्यम से बनते हैं। शेष 2 सितारों की दिलचस्प बात यह है कि 10 -16 % ब्लू स्ट्रगलर दो से अधिक सितारों की परस्पर क्रिया के माध्यम से बनते हैं”।
यह अध्ययन विभिन्न आकाशगंगाओं सहित बड़ी तारकीय आबादी के अध्ययन में रोमांचक परिणामों को उजागर करने के साथ ही इन तारकीय प्रणालियों (स्टेलर सिस्टम्स) की जानकारी की समझ में और सुधार लाने में सहायक बनेगा। इन निष्कर्षों के बाद, शोधकर्ता तारकीय गुणों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न श्रेणियों में अलग-अलग ब्लू स्ट्रैगलर का विस्तृत विश्लेषण कर रहे हैं। इसके अलावा, इस अध्ययन में पहचाने गए दिलचस्प समूहों और ब्लू स्ट्रैगलरर्स का अनुसरण भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट पर पराबैंगनी इमेजिंग (अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग) टेलीस्कोप के साथ-साथ नैनीताल स्थित 3.6 मीटर के देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप के साथ किया जाएगा।
ब्लू स्ट्रैगलर्स खुले या गोलाकार समूहों में सितारों का एक ऐसा वर्ग जो अलग ही दिखाई देते हैं क्योंकि वे बाकी सितारों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े और नीले रंग के होते हैंI ये उन वैज्ञानिकों को चिंतित करते हैं जिन्होंने लंबे समय से इन तारों की उत्पत्ति का अध्ययन किया है।
ब्लू स्ट्रैगलर का पहला व्यापक विश्लेषण करते हुए भारतीय शोधकर्ताओं ने पाया है कि उनके द्वारा देखे गए नमूनों में से आधे ब्ल्यू (नीले) स्ट्रैग्लर एक करीबी द्वि-ध्रुवीय (बाइनरी) साथी तारे से बड़े पैमाने पर द्रव्य स्थानांतरण के माध्यम से बनते हैंI एक तिहाई संभावित रूप से 2 सितारों के बीच टकराव के माध्यम से बनते हैं तथा शेष 2 से अधिक तारों की परस्पर क्रिया से बनते हैं।
तारा मंडल में विद्यमान एक ही बादल से एक ही निश्चित अवधि में जन्मे तारों का कोई एक समूह अलग से दूसरा समूह बना लेता है। जैसे-जैसे समय बीतता है, प्रत्येक तारा अपने द्रव्यमान के आधार पर अलग-अलग विकसित होने लगता है।
इनमें सबसे विशाल और चमकीले तारे विकसित होने के बाद मुख्य अनुक्रम से हट जाते हैं, जिससे उनके मार्ग में एक ऐसा विपथन आ जाता है जिसे टर्नऑफ़ के रूप में जाना जाता है। इस मार्ग परिवर्तन के बाहर की परिधि में जा चुके गर्म और चमकीले तारों के फिर उसी समूह में बने रहने की अपेक्षा नहीं की जाती है, क्योंकि इसके बाद वे लाल दानव बनने के लिए मुख्य धारा को छोड़ देते हैं। लेकिन 1953 में, एलन सैंडेज ने पाया कि कुछ सितारे मूल समूह (पेरेंट क्लस्टर) के टर्नऑफ़ की तुलना में अधिक गर्म लगते हैं। प्रारंभ में टर्न ऑफ़ के ऊपर और आसपास ही मंडरा रहे ये नीले तारे इन समूहों का हिस्सा नहीं थे।
हालांकि बाद में हुए अध्ययनों ने यह पुष्टि की कि ये सितारे वास्तव में उसी क्लस्टर के सदस्य हैं और तब उन्हें “ब्लू स्ट्रैगलर्स” कहा गया। ऐसे समूहों में इन सितारों के अभी भी मौजूद होने का एकमात्र तरीका यह हो सकता है कि उन्होंने संभवतः मुख्यधारा में रहते हुए ही रास्ते में किसी तरह से अतिरिक्त द्रव्यमान प्राप्त कर लिया हो। इस प्रकार अतिरिक्त द्रव्यमान हासिल कर लेने की प्रणाली की पुष्टि करने के लिए नीले-स्ट्रैगलर सितारों के एक बड़े नमूने और उनके द्वारा प्राप्त द्रव्यमान के अनुमानों का उपयोग करके एक समग्र अध्ययन की आवश्यकता होती है।