भारतीय वैज्ञानिकों ने एक पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया विकसित की है, जो वायुयान निर्माण (एयरोस्पेस), वस्त्र उद्योग (टेक्सटाइल) और मोटर वाहन (ऑटोमोटिव) निर्माण कार्यों में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली उच्च क्षमता वाली एल्युमिनियम मिश्र धातुओं को क्षरण से बचाss सकती है। इसमें धातु सब्सट्रेट पर ऑक्साइड फिल्म के उत्पादन के लिए एक विद्युत रासायनिक विधि शामिल है।

उच्च क्षमता (शक्ति) वाले एल्युमिनियम मिश्र धातुओं का उपयोग उनके कम घनत्व और उच्च विशिष्ट शक्ति के कारण वायुयान निर्माण (एयरोस्पेस), वस्त्र उद्योग (टेक्सटाइल) और मोटर वाहन (ऑटोमोटिव) निर्माण कार्यों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। एल्युमिनियम मिश्रधातु  (अलॉय से बने वायुयानों के घटकों (कल-पुर्जों) में लैंडिंग गियर, विंग स्पर, जो पंखों (विंग्स) का मुख्य संरचनात्मक हिस्सा है, धड़ (एक विमान का मुख्य ढांचा), विमान की बाहरी सतह (चादर) और प्रेशर केबिन शामिल हैं। इन भागों को अक्सर टूट-फूट, क्षरण (जंग) से होने वाले नुकसान, और मिश्रधातु के जीवनकाल से अधिक समय तक उपयोग के मद्देनजर प्रतिरोध की आवश्यकता होती है। एल्युमिनियम मिश्रधातुओं को क्षरण (जंग) से बचाने के लिए अधिकतर हार्ड एनोडाइजिंग (एचए) प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसके अंतर्गत इस मिश्रधातु पर एक इलेक्ट्रोलाइट-आधारित परत चढ़ाई (कोटिंग की) जाती है। इसमें सल्फ्यूरिक/ऑक्सेलिक आधारित इलेक्ट्रोलाइट्स का प्रयोग करना शामिल हैं, जो न केवल जहरीले धुएं का उत्सर्जन करते हैं, बल्कि प्रसंस्करण के दौरान उनको संभालना भी जोखिम भरा होता है ।

स्वच्छ औद्योगिक प्रक्रियाओं की बढ़ती मांग को पूरा करने के उद्देश्य से पाउडर धातुकर्म और नई सामग्री के लिए भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संगठन अंतर्राष्ट्रीय उन्नत अनुसंधान केंद्र (एआरसीआई),  माइक्रो-आर्क ऑक्सीकरण (एमएओ) नामक एक पर्यावरण-अनुकूल प्रक्रिया विकसित की है। इस प्रक्रिया में एक क्षारीय इलेक्ट्रोलाइट का प्रयोग शामिल है जो हार्ड एनोडाइजिंग (एचए) प्रक्रिया की तुलना में टूट-फूट और क्षरण से प्रतिरोध प्रदान करने में अधिक बेहतर ढंग से सक्षम है।

एमएओ एक उच्च-वोल्टेज पर की जाने वाली संचालित एनोडिक-ऑक्सीकरण प्रक्रिया है, जो एक विद्युत रासायनिक विधि के माध्यम से धातु सब्सट्रेट पर ऑक्साइड फिल्म बनाती है। एआरसीआई टीम ने शॉट पीनिंग के लिए एक डुप्लेक्स ट्रीटमेंट को और डिजाइन व विकसित किया है जिसके अंतर्गत धातुओं और मिश्र धातुओं के यांत्रिक गुणों को संशोधित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया अपनाई जाती है और उसके बाद उन पर माइक्रो-आर्क ऑक्सीकरण (एमएओ) कोटिंग की जाती है। एआरसीआई में व्यवस्थित जांच से पता चला है कि डुप्लेक्स ट्रीटमेंट के बाद एमएओ कोटिंग करने से एल्युमिनियम मिश्रधातु से बने उपकरणों की टूट-फूट कम होने के साथ ही उनका क्षरण के प्रति प्रतिरोध भी बढ़ा है और उनका जीवनकाल भी उल्लेखनीय रूप से अधिक हो गया है। डुप्लेक्स ट्रीटमेंट की प्रभावकारिता को विभिन्न एल्युमिनियम मिश्र धातुओं के लिए मान्य किया गया है और इसे क्षरण से बेहतर बचाव और पुर्जों की जीवन अवधि बढ़ाने के लिए भी विस्तारित किया गया है। इस प्रक्रिया को हाल ही में ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फैटिग’ में प्रकाशित किया गया  है।

एआरसीआई में विकसित एमएओ प्रक्रिया को भारत और विदेशों में पेटेंट कराया गया है। एआरसीआई की टीम ने (20 केवीए), बेंच (75 केवीए), और औद्योगिक (500 केवीए तक) की माइक्रो-आर्क ऑक्सीकरण (एमएओ) प्रणाली की प्रयोगशालाओं के डिजाइन और विकास में महारत हासिल की है ताकि अनुसंधान और विकास के स्तर से व्यावसायिक उत्पादन में प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक उपयोग किया जाना सम्भव हो सके। तार्किक विस्तार के रूप में, कस्टम-निर्मित प्रौद्योगिकी प्रणालियों को भारत में विभिन्न उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया गया। वायुयान (एयरोस्पेस) निर्माण एयरोक्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, एआरसीआई में व्यापक शोध किया गया है, और सामान्य एवं इसके साथ-साथ  साथ क्षरण (जंग) के वातावरण को दुरुस्त करने के अंतर्गत अब एल्युमिनियम मिश्र धातुओं के उच्च-चक्र जीवन काल में काफी सुधार किया जा सकता है।

आवश्यक संशोधनों के साथ इस प्रक्रिया का उपयोग एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, टाइटेनियम, जिर्कोनियम और उनके मिश्रधातुओं से बने विभिन्न घटकों के टूट-फूट, जंग, थर्मल और जीवनकाल को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

अधिक जानकारी के लिए, डॉ. एल. राम कृष्ण, वैज्ञानिक- ‘एफ’, सेंटर फॉर इंजीनियर कोटिंग्स और अध्यक्ष, एआरसीआई के एयरोस्पेस वर्किंग ग्रुप, ईमेल आईडी: lrama@arci.res.in से संपर्क किया जा सकता है।

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