उत्तराखंड में देहरादून के इर्दगिर्द के ग्रामीण इलाकों से पैक किए हुए और ब्रांडेड बाजरा आधारित कुकीज़, रस, स्नैक्स और नाश्ते के अनाज आसपास के इलाकों के ग्रामीण, शहरी और स्थानीय बाजारों में अपनी पैठ बनाते हुए जोरदार तरीके से इन इलाकों के बाजरा किसानों की किस्मत बदल रहा हैं और यहां की बाजरा की खेती को फिर से जीवित हों रही हैं।
हालांकि, पिछले कुछ समय से बाजरा और पोषक तत्व वाले अन्य अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से अपने लाभकारी गुणों के कारण लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। लेकिन उपभोक्ताओं के आकर्षण के साथ इन अनाजों के पैक किए गए उत्पादों को अभी भी बाजार में पर्याप्त पहचान नहीं मिल पाई है। ग्रामीण इलाकों में इन उत्पादों को बनाने की तकनीकें भी अविकसित हैं। इस क्रम में एक महत्वपूर्ण काम इन अनाजों से भूसी को हटाना है, जिसे हाथ से कुटाई के जरिए करने पर यह बेहद ही उबाऊ प्रक्रिया बन जाती है। खासकर, उन महिलाओं के लिए जो आमतौर पर इस काम को करती हैं।
इस बदलाव के केंद्र में मल्टी – फीड बाजरा आधारित डी-हुलर मशीन है, जिसने बाजरे से भूसी को हटाने की लंबी एवं श्रमसाध्य पारंपरिक प्रक्रिया को सरल बनाया है, उत्पादकता को बढ़ाया है और गांव या गांवों के क्लस्टर के स्तर पर मूल्यवर्द्धित बाजरा के आटे की आपूर्ति की है, जिससे आगे के अन्य मूल्यवर्द्धित उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं।
सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट (सीटीडी), जोकि सोसाइटी फॉर इकोनोमिक एंड सोशल स्टडीज का एक प्रभाग है और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्कीम फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (SEED) प्रभाग की तारा योजना के तहत एक कोर सहायता समूह है, ने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान द्वारा विकसित मल्टी-फीड बाजरा आधारित डी-हुलर मशीनों को ज़रूरतों के अनुरूप रूपांतरित किया है। इस संस्थान ने डी-हुलर मशीन में कुछ साधारण सुधारों को संभव बनाने के उद्देश्य से इसके डिज़ाइन में हल्का बदलाव किया गया है ताकि एक ही मशीन के इस्तेमाल से बाजरे (मिलेट) की कई किस्मों जैसे कि फिंगर मिलेट (दक्षिण में रागी या उत्तराखंड में मंडुआ), बर्न्यार्ड मिलेट (यूके में झंगोरा) तथा कुछ और इलाकों की बाजरे की कुछ अन्य किस्मों की भूसी को हटाया जा सके।
यह प्रौद्योगिकी पैकेज और उद्यम मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से छोटे किसानों, जिनमें से अधिकांश बाजरा की खेती करने वाले किसान हैं, के लिए काफी रोजगार और आय पैदा करता है। यह डी-हुलर मशीन महिलाओं को भूसी हटाने के उबाऊ काम से छुटकारा दिलाते हुए और पुरुषों के इलाके से प्रवास करने की वजह से महिलाओं की अगुवाई में चलने वाले परिवारों, जोकि उत्तराखंड में आम हैं, की आय में बढ़ोतरी करते हुए उनका सशक्तिकरण करता है। महिलाओं के एसएचजी द्वारा किया जाने वाला सामूहिक संचालन महिलाओं को घर के बाहर स्वतंत्र रूप से काम करने और बाजार के साथ संपर्क करने में सक्षम बनाकर उन्हें और अधिक सशक्त बनाते हैं। दीर्घकालिक रूप से, बाजरे की खेती को पुनर्जीवित करने से जलवायु के अनुकूल कृषि के निर्माण में भी मदद मिलेगी और संबंधित मूल्य – संवर्द्धन के साथ-साथ पुरुषों के इलाके के बाहर जाकर प्रवास करने की समस्या का समाधान करने में भी मदद मिल सकती है।
इस समय 5 और सैटेलाइट इकाइयां, जोकि विकास के विभिन्न चरणों में हैं, विभिन्न इलाकों में कार्यरत हैं। इन इकाइयों से लगभग 400 बाजरा किसान जुड़े हैं। स्थानीय ग्रामीण बाजारों और अपेक्षाकृत अधिक शहरी या क्षेत्रीय उपभोक्ताओं, दोनों, के लिए उपयोगी उत्पादों के साथ यह प्रौद्योगिकी पैकेज और उद्यम मॉडल छोटे-किसानों द्वारा संचालित स्व-सहायता समूहों, किसान उत्पादक संगठनों और छोटे ग्रामीण उद्यमियों के लिए आदर्श है।