उड़ीसाडायरी में प्रकाशित

आत्मनिर्भर भारत की कुंजी सतत विकास है। समय की आवश्यकता ऐसे विकास मॉडल की है, जो संसाधनों के अधिकतम उपयोग की ओर ले जाए। बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि के साथ भारत को वृत्तीय अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ना होगा। अपशिष्ट तथा संसाधनों के निरंतर उपयोग को समाप्त करने वाले आर्थिक दृष्टिकोण के रूप में वृत्तीय अर्थव्यवस्था एक नया कीर्तिमान पेश करती है, जिसमें उत्पादों तथा प्रक्रियाओं को समग्र दृष्टि से देखने से होता है। देश की उत्पादन प्रणाली को वृत्तीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों के साथ साथ काम कर रहे व्यवहारों को अपनाना होगा ताकि ये व्यवहार न केवल संसाधन निर्भरता में कमी लाएं बल्कि स्पर्धी भी बनें।

भारत द्वारा अपनाई गई वृत्तीय अर्थव्यवस्था से भीड़भाड़ तथा प्रदूषण में महत्वपूर्ण कमी के साथ भारत को काफी अधिक वार्षिक लाभ मिल सकता है। अपने संसाधन, दक्षता को अधिक से अधिक बढ़ाने, सीमित संसाधनों की खपत को कम करने और नए बिजनेस मॉडल तथा उद्यम को गति देने में हमारी कुशलता हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाएगी। सरकार देश को वृत्तीय अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है और परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, ई अपशिष्ट प्रबंधन नियम, निर्माण तथा गिरावट अपशिष्ट प्रबंधन नियम तथा धातु रिसाइक्लिंग नीति जैसे विभिन्न नियमों को अधिसूचित किया है।

नीति आयोग ने अपने गठन के बाद से सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के अनेक कदम उठाए हैं। अपशिष्ट को संसाधन के रूप में इस्तेमाल करने में आ रही चुनौतियों के समाधान और भारत में रिसाइक्लिंग उद्योग पर दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रत्यक्ष कदम उठाए गए। इस्पात उद्योग के उपयोग में आने वाली राख के कण तथा इस्पात के तलछट का उपयोग अन्य क्षेत्रों में करने के काम को प्रोत्साहित करने में प्रगति हुई है। “राष्ट्रीय रिसाइक्लिंग के माध्यम से सतत विकास” विषय पर नीति आयोग ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया, भारत आए ईयू के शिष्टमंडल के साथ संसाधन सक्षमता पर रणनीति पत्र तैयार किया गया तथा इस्पात (इस्पात मंत्रालय के साथ), एल्यूमीनियम (खान मंत्रालय के साथ), निर्माण तथा गिरावट (आवास तथा शहरी कार्य मंत्रालय के साथ) और ई-अपशिष्ट (इलेक्ट्रॉनिकी तथा सूचना मंत्रालय के साथ) पर रणनीति पत्र तैयार किया।

रेखीय से वृत्तीय अर्थव्यवस्था में देश को तेजी से ले जाने के लिए 11 समितियां बनाई गई हैं। समितियां अपने-अपने फोकस वाले क्षेत्रों में देश को रेखीय अर्थव्यवस्था से वृत्तीय अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए व्यापक कार्य योजनाएं तैयार करेंगी। अपने निष्कर्षों तथा सिफारिशों का कारगर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए समितियां आवश्यक तौर-तरीके अपनाएंगी।, जो निरंतर रूप से चुनौतियां पेश कर रही हैं और चुनौती के नए क्षेत्र बन रही हैं। इसका समग्र तरीके से समाधान होना चाहिए।

मैन्युफैक्चरिंग में वृद्धि तथा खपत के तरीकों में परिवर्तन से अधिक रोजगार सृजन होगा और प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी। इसलिए ऐसे अधिक उत्पादन का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ेगा और इसका सक्षम प्रबंधन किया जाना चाहिए। विश्व की केवल दो प्रतिशत भूमि और चार प्रतिशत ताजा जल संसाधनों के साथ “लो, बनाओ, नष्ट करो” मॉडल की रेखीय अर्थव्यवस्था भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बाधित करेगी और परिणामस्वरूप समग्र अर्थव्यवस्था बाधित होगी। इसलिए मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया क्रांतिकारी बनाने और आर्थिक तथा पर्यावरण लाभ देने वाली वृत्तीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना आवश्यक है।

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