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अपनी लगन व कड़ी मेहनत की बदौलत गांव की घरेलू व लगभग निरक्षर महिलाएं आईआईटी पहुंच गई हैं। सुनकर हैरानी होगी, मगर यह सच है। हालांकि ये महिलाएं आईआईटी में पढ़ने-पढ़ाने या काम करने नहीं बल्कि हुनर सीखने पहुंची हैं। महिलाओं को आईआईटी की मदद से मुंबई की एक संस्था इंडस्ट्री में प्रयुक्त होने वाली हाईटेक मशीनों पर सिलाई व ड्रेस तैयार करने का प्रशिक्षण दे रही हैं। इसमें करीब 36 से अधिक महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। जल्द इन महिलाओं को एक समूह बनाकर आत्मनिर्भर बनाने की तैयारी है।

गांव की महिलाएं ड्रेस बनाना सीख रही हैं। गांव में सामान्य मशीन से प्रशिक्षण लेने के बाद अब ये आईआईटी की देखरेख में हाईटेक मशीनों पर काम करना सीख रही हैं। ये मशीनें पूरी तरह ऑटोमेटिक व बिजली से चलने वाली हैं। इन्हीं मशीनों से इंडस्ट्री में काम होता है।

अधिकतर महिलाएं घरेलू हैं। वे घर का ही काम करती हैं। मगर कोरोना संक्रमण के कारण जब लॉकडाउन हुआ तो अधिकांश परिवारों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। किसी के पति की नौकरी गई तो किसी के पिता व भाई को काम मिलना बंद हो गया। ऐसी विपरीत परिस्थिति में इन घरेलू महिलाओं ने हिम्मत बांधी और आईआईटी की मदद से मास्क बनाना शुरू किया। इनका बनाया मास्क सिर्फ कानपुर नहीं बल्कि मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, पुणे जैसे शहरों तक बिका। यह मास्क डिजाइनर होने के साथ नैनोटेक्नोलॉजी के प्रयोग से सुरक्षित भी है।

ईश्वरीगंज के रामदास ब्लू वर्ल्ड में काम करता था। लॉकडाउन हुआ तो रामदास की नौकरी चली गई। एक माह तक घर में रखे पैसे से खर्च चला। धीरे-धीरे स्थिति खराब हुई। तब रामदास की पत्नी प्रिया आगे आई और आईआईटी की मदद से घर पर मास्क बनाने का काम शुरू किया। प्रिया की इस लगन और दूर होती मुसीबत को देख गांव की अन्य महिलाओं ने भी साथ देना शुरू कर दिया। अब प्रिया कई महिलाओं के साथ ड्रेस तैयार करना सीख रही है।

गांव के राजू सुधांशु महाराज के आश्रम में खाना बनाने का काम करता था। लॉकडाउन के कारण उसकी नौकरी चली गई। अचानक नौकरी जाने से परिवार पर आर्थिक संकट टूट पड़ा। परिवार की स्थिति देख राजू की पत्नी आशा ने आईआईटी की देखरेख में ट्रेनिंग ली और घर में ही मास्क बनाने का काम शुरू कर दिया। इससे परिवार की स्थिति सुधर गई। अब आशा ड्रेस बनाना सीख रही है। आशा का कहना है कि अब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।

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