रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने कर्नाटक में चित्रदुर्ग एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज से स्वदेशी रूप से विकसित उच्च गति वाले मानव रहित विमान फ्लाइंग-विंग, ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर का सफल उड़ान परीक्षण किया है। इस ऑटोनॉमस रडार से बचने में सक्षम गोपनीय मानव रहित विमान का सफल उड़ान परीक्षण भारत में प्रौद्योगिकी तत्परता के स्तर में परिपक्वता का प्रमाण है। इस सफलता के साथ ही भारत टेललेस कॉन्फिगरेशन में फ्लाइंग विंग तकनीक के नियंत्रण में महारत हासिल करने वाले देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है।

इस मानव रहित विमान को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान द्वारा तैयार और विकसित किया गया है। इस विमान की पहली सफल उड़ान जुलाई 2022 में की गई थी और इसके बाद दो आंतरिक रूप से निर्मित प्रोटोटाइप का उपयोग करके विभिन्न विकासात्मक विन्यासों में छह उड़ान परीक्षण किए गए। इन उड़ान-परीक्षणों से सशक्त वायुगतिकीय एवं नियंत्रण प्रणाली के विकास; एकीकृत वास्तविक समय और हार्डवेयर-इन-लूप सिमुलेशन तथा अत्याधुनिक ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन स्थापित करने में सफलता प्राप्त हुई है। टीम ने अंतिम कॉन्फिगरेशन में सफल सातवीं उड़ान के लिए वैमानिकी प्रणाली, एकीकरण व उड़ान संचालन को अनुकूलित किया था।

एयरक्राफ्ट प्रोटोटाइप को एक जटिल एरोहेड विंग प्लेटफॉर्म के साथ स्वदेशी रूप से विकसित कम भार वाले कार्बन प्रीप्रेग मिश्रित सामग्री के साथ तैयार और विकसित किया गया है। इसके अलावा, कामकाजी निगरानी के लिए फाइबर इंटेरोगेटर्स से युक्त समग्र संरचना, एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी में ‘आत्मनिर्भरता’ का एक उदाहरण है। ग्राउंड राडार/बुनियादी ढांचे/पायलट की आवश्यकता के बिना इस उच्च गति वाले मानव रहित विमान की ऑटोनॉमस लैंडिंग ने एक अद्वितीय क्षमता का प्रदर्शन किया, जो संचालन में पाए गए निर्देशांक के साथ किसी भी रनवे से टेक-ऑफ तथा लैंडिंग की अनुमति देता है। इसमें जीपीएस नेविगेशन की सटीकता और समग्रता में सुधार के लिए जीपीएस एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन (जीएजीएएन) रिसीवर का उपयोग करके स्वदेशी उपग्रह-आधारित संवर्द्धन के साथ ऑनबोर्ड सेंसर डेटा फ्यूजन का उपयोग करना संभव है।

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