दैनिक भास्कर के अनुसार
आदिवासी किसानों को हल्दी की जैविक खेती से आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि महाविद्यालय ने मुहिम शुरू की है। यह मुहिम केरल से मिले प्रोजेक्ट के बाद राज्य में पहली बार कोटा ब्लाॅक के 20 गांवों से शुरू हुई है। 20 गांवों को प्रशिक्षण देकर तैयार कर 20 गांवों के कुल 22 हेक्टेयर में हल्दी की फसल लगाई गई है। इसके लिए कृषि महाविद्यालय ने पिछड़े इलाकों के 250 आदिवासी किसानों को मुफ्त में बीज उपलब्ध कराए। फसलों में जैविक दवाई का छिड़काव भी निशुल्क उपलब्ध कराया।

फसल में सात वेरायटी लगाई गई हैं जिससे उसके पीलेपन के प्रतिशत (करप्यूरिंग) का पता चलेगा कि किस वेरायटी में गुणवत्ता अधिक है। वैरायटियों में रोमा, सुरंजना, बीएसआरटू, राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली और प्रतिभा शामिल हैं। इन वेरायटियों में ही गुणवत्ता परखी जाएगी। यदि हल्दी में इसके पीलेपन का प्रतिशत 4 फीसदी से भी अधिक पाया जाता है तो उसे अच्छी हल्दी के रूप में माना जाएगा। जैविक हल्दी है या नहीं, इसके प्रमाण के लिए पंजीयन होना जरूरी है। कृषि महाविद्यालय के अतिरिक्त रायपुर में सरकारी संस्था से भी पंजीयन कराया जा रहा है जिसके बाद जैविक हल्दी के रूप में आदिवासी किसानों को प्रमाण पत्र दिया जाएगा।

कृषि महाविद्यालय ने यह निर्णय लिया है कि अगर फसल कसौटी पर खरी उतरी तो पूरी फसल ही केरल द्वारा खरीद ली जाएगी। ये कार्य कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की देखरेख में पूरा किया जा रहा है।  वर्तमान में ही जैविक हल्दी के लिए बिलासपुर व रायपुर से डिमांड आने लग गई है। वर्तमान में बाजार में जैविक हल्दी की कीमत 120 रुपए से 150 रुपए तक है।

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